naat sharif in punjabi
Karam K Badal by Zulfiqar Ali Mashallah aap jese naat kha mene nhi suna ta .aapki voice me mere Nabi SAWW ki naat ho ya hamad ho ya manqabat ho sab mujhe ek alag Hello sukun pahuchati hai ..Allah apne Habib k sadke Zulfiqar Ali husaaini shab ko jannatul firdaus me aala se aala maqam ata kre.
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from that time forward he persistently carried out for Hamd - Naat sharif 2024 on different radio and tv applications in Pakistan. He was offered the job to existing Hamad - Naat at the first live transmission. In his expert vocation, he has been given the title 'King of Recitation' by his tender supporters in Pakistan.
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Website visitors arriving in Saudi Arabia are also required to give a damaging PCR COVID-19 check taken not more than 72 several hours in advance of departure and an authorized paper vaccination certificate, issued via the official health authorities within the issuing place.
In a few Arab cultures, There is certainly an inclination to stop elaborate celebrations and focus on spiritual facets. Nations around the world like Indonesia and Malaysia could keep general public festivals, like parades and cultural gatherings, to rejoice Eid Milad. Streets and properties will often be decorated with banners and Islamic calligraphy. Some Middle Eastern international locations location a powerful emphasis on religious gatherings, in which Students discuss the daily life and teachings with the Prophet. In Western international locations with Muslim populations, the celebration of Eid Milad may differ, influenced by neighborhood customs as well as range of Muslim communities.
कव्वाली से तो हर कोई वाकिफ है, जहां तक नात की बात है तो यह एक विशेष तरह की धार्मिक कविता शैली में बेहद खूबसूरत गीत होता है. वस्तुतः नात पैगंबर मुहम्मद की जिंदगी, उनके गुण, उनके उपदेश व उनके योगदान को श्रद्धांजलि देने का विशेष अंदाज होता है. नात की परंपरा को निम्न बिंदुओं से समझा व देखा जा सकता है.
वैसे ईद मिलाद की छुट्टी पर एक बड़ा अपडेट आया है.
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जर्मनी में भारी विरोध के बावजूद पारित हुआ एंटीसेमिटिज्म प्रस्ताव
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मिटा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं ग़ौस-उल-आ'ज़म हो, ग़ौस-उल-वरा हो नूर हो नूर-ए-सल्ले-'अला हो क्या बयाँ आप का मर्तबा हो ! दस्त-गीर और मुश्किल-कुशा हो आज दीदार अपना करा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं सुन रहे हैं वो फ़रियाद मेरी ख़ाक होगी
दिल ये 'उमर का बोल उठा, ला-इलाहा-इल्लल्लाह
नूर-ए-मुहम्मद सल्लल्लाह, ला-इलाहा-इल्लल्लाह
जब बारहवीं पे लाइटों से गलियाँ भी सजती हैं
अमरकांत की कहानी “डिप्टी कलेक्टरी” की समीक्षा
नबी का लब पर जो ज़िक्र है बे-मिसाल आया, कमाल आया !
कहाँ जाए, आक़ा ! ये मँगता भला मदीना बुला लीजिए वो रमज़ान तेरा, वो दालान तेरा वो अज्वा, वो ज़मज़म, ये मेहमान तेरा तेरे दर पे इफ़्तार का वो मज़ा मदीना बुला लीजिए जहाँ के सभी ज़र्रे शम्स-ओ-क़मर हैं जहाँ पे अबू-बक्र-ओ-'उस्माँ, 'उमर हैं जहाँ जल्वा-फ़रमा हैं हम्ज़ा चचा मदीना बुला लीजिए हुआ है जहाँ से जहाँ ये मुनव्वर जहाँ आए जिब्रील क़ुरआन ले कर मुझे देखना है वो ग़ार-ए-हिरा मदीना बुला लीजिए जिसे सब हैं कहते नक़ी ख़ाँ का बेटा वो अहमद रज़ा है बरेली में लेटा उसी आ'ला
मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से डालो नज़र-ए-करम, सरकार ! अपने मँगतों पर इक बार हम ने आस है लगाई बड़ी देर से मेरे चाँद ! मैं सदक़े, आजा इधर भी चमक उठे दिल की गली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से तेरे रब ने मालिक किया तेरे जद को तेरे घर से दुनिया पली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से तेरा रुत्बा आ'ला न क्यूँ हो, कि मौला !
हम ने आँखों से देखा नहीं है मगर उन की तस्वीर सीने में मौजूद है जिस ने ला कर कलाम-ए-इलाही दिया वो मुहम्मद मदीने में मौजूद है हम ने आँखों से देखा नहीं है मगर उन का जल्वा तो सीने में मौजूद है जिस ने ला कर कलाम-ए-इलाही दिया वो मुहम्मद मदीने में मौजूद है फूल खिलते हैं पढ़ पढ़ के सल्ले-'अला झूम कर कह रही है ये बाद-ए-सबा ऐसी ख़ुश्बू चमन के गुलों में कहाँ ! जो नबी के पसीने में मौजूद है हम ने माना कि जन्नत बहुत है हसीं छोड़ कर हम मदीना न जाएँ कहीं यूँ तो जन्नत में सब है मदीना नहीं और जन्नत मदीने में मौजूद है छोड़ना तेरा तयबा गवारा नहीं सारी दुनिया में ऐसा नज़ारा नहीं ऐसा मंज़र ज़माने में देखा नहीं जैसा मंज़र मदीने में मौजूद है ना'त-ख़्वाँ: महमूद जे.
हम ने आँखों से देखा नहीं है मगर उन की तस्वीर सीने में मौजूद है जिस ने ला कर कलाम-ए-इलाही दिया वो मुहम्मद मदीने में मौजूद है हम ने आँखों से देखा नहीं है मगर उन का जल्वा तो सीने में मौजूद है जिस ने ला कर कलाम-ए-इलाही दिया वो मुहम्मद मदीने में मौजूद है फूल खिलते हैं पढ़ पढ़ के सल्ले-'अला झूम कर कह रही है ये बाद-ए-सबा ऐसी ख़ुश्बू चमन के गुलों में कहाँ ! जो नबी के पसीने में मौजूद है हम ने माना कि जन्नत बहुत है हसीं छोड़ कर हम मदीना न जाएँ कहीं यूँ तो जन्नत में सब है मदीना नहीं और जन्नत मदीने में मौजूद है छोड़ना तेरा तयबा गवारा नहीं सारी दुनिया में ऐसा नज़ारा नहीं ऐसा मंज़र ज़माने में देखा नहीं जैसा मंज़र मदीने में मौजूद है ना'त-ख़्वाँ: महमूद जे.
गौस उल वरा और दाता ने, मेरे रजा और ख्वाजा ने।
तेरा खावाँ, मैं तेरे गीत गावाँ, या रसूलल्लाह !
या रसूल अल्लाह या हबीब अल्लाह, सल्ला अलैका या रसूल अल्लाह।
तेरा मीलाद मैं क्यूँ न मनावाँ, या रसूलल्लाह !